religion,धर्म-कर्म और दर्शन -164

religion and philosophy- 164

🏵️ उत्तराखंड का सतोपंथ ताल 🏵️

महाभारत में पांडवों का देवभूमि उत्तराखंड से गहरा संबंध है। पांडवों ने अपना अज्ञातवास उत्तराखंड में ही बिताया था। वहीं, युद्ध के बाद ब्रह्म हत्या के लिए पांडवों ने केदारनाथ आकर प्रायश्चित किया था। यही नहीं, पांडवों ने हिमालय के गोद में बसे संतोपंथ झील से ही अपने स्वर्ग की यात्रा शुरू की थी। मान्यताओं के अनुसार सतोपंथ झील से ही स्वर्ग की सीढ़ी जाती है।

सतोपंथ का मतलब होता है सत्य का रास्ता। महाभारत के अनुसार पांडवों ने स्‍वर्ग जाने के रास्‍ते में इसी पड़ाव पर स्‍नान और ध्यान लगाया था। इसके बाद ही उन्होंने आगे का सफर तय किया था। मान्यताओं के अनुसार पांडव जब स्वर्ग की तरफ जा रहे थे तब एक-एक करके सभी की मृत्यु हो गई थी। इसी स्थान पर भीम की मृत्यु हुई थी। पांडवों में केवल युद्धिष्ठिर ही सशरीर स्वर्ग पहुंचे थे। इसी स्‍थान पर धर्मराज युधिष्ठिर के लिए स्‍वर्ग तक जाने के लिए आकाशीय वाहन आया था।
देवभूमि गढ़वाल में हिमालय की गोद में एक पौराणिक यात्रा, इस मार्ग को स्वर्ग की सीढ़ी माना जाता है, जिसके माध्यम से पांडव अपनी पत्नी द्रौपदी के साथ स्वर्ग की यात्रा पर निकले थे। यह हिंदू धर्म का एक बहुत ही महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल भी है, जो बद्रीनाथ जी या बद्री विशाल है, जो भगवान विष्णु को समर्पित है, जो चार धामों में से एक है।
सतोपंथ झील एक त्रिकोणीय आकार की ऊँची हिमनद झील है जो बद्रीनाथ जी से 25 किलोमीटर की दूरी पर समुद्र तल से 15,100 फीट ऊपर स्थित है। जैसे ही आप इस ट्रेक को शुरू करते हैं, आप भारत की सबसे प्राचीन और पवित्र नदी सरस्वती के दर्शन करने वाले होते हैं, जो केवल बद्रीनाथ जी में ही दिखाई देती है और अन्य पवित्र नदी अलकनंदा का उद्गम, ध्यान के लिए उपयोग की जाने वाली ऋषि-मुनि की गुफाएँ, वसुधारा और सहस्रधारा जैसे झरने, बर्फ से ढकी पर्वत चोटियाँ चौखंभा, नीलकंठ, पार्वती, सतोपंथ कोल, बालकुन, नर नारायण और सतोपंथ ग्लेशियर हैं जो आपको ऊर्जा और रोमांच से भर देते हैं।
यह झील हिंदुओं के लिए धार्मिक महत्व रखती है।
किंवदंती के अनुसार, इस त्रिकोणीय झील के प्रत्येक कोने में हिंदू त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश हजारों वर्षों से यहां ध्यान करते हैं पांडवों की पत्नी द्रौपदी को भीम शिला पुल के पास सरस्वती नदी पार करने के बाद पहला मोक्ष मिला, सहदेव को लक्ष्मीवन में, नकुल को सहस्त्रधारा में, अर्जुन को चक्रतीर्थ में और भीम को सतोपंथ में मोक्ष मिला।
केवल पांडवों के बड़े भाई युधिष्ठिर ही स्वर्ग पहुँचे थे, उनके साथ एक काला कुत्ता था जो स्वर्गरोहिणी से इस पूरे मार्ग पर उनके साथ था, जो सतोपंथ झील से 5 किलोमीटर दूर है।
यह ट्रेक रोमांच और तीर्थयात्रा से भरा है, इसे आजमाने लायक है। इस ट्रेक की कठिन और चुनौतीपूर्ण प्रकृति के कारण पहाड़ में ट्रेकिंग का पिछला अनुभव होना चाहिए।

*डॉ रमेश खन्ना*
*वरिष्ठ पत्रकार*
*हरीद्वार (उत्तराखंड)*

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