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religion,धर्म-कर्म और दर्शन -168

religion and philosophy- 168

🌼दतिया की माँ पीताम्बरा, यहां युधिष्ठिर ने कौरवों पर विजय पाने के लिए की थी मां की आराधना।🌼

36 खास बातें, लोग कम ही जानते होंगे…

३६ अक्षरों का मंत्र बगलामुखी का मंत्र ….३६ अक्षर का होता है। उन्हें ३६ की संख्या प्रिय है।
अतः ३६००, ३६००० इसी क्रम से मंत्र जाप के अनुष्ठान विशेष प्रकार से फलदायक माने जाते हैं!

शत्रु-विनाश, मारण, मोहन, उच्चाटन और वशीकरण के लिए बगलामुखी देवी की आराधना की जाती है!

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बगलामुखी की साधना वीर रात्रि (मकर रात्रि में सूर्य के होने पर चतुर्दशी, दिन मंगलवार) में विशेष प्रकार से सिद्धिप्रद मानी गयी है।
भगवती को पीत रंग विशेष प्रिय है । यही कारण है कि वह पीतांबर धारण करती हैं और उपासक भी पीले वस्त्र धारण कर पीले कनेर या पीले फूल लेकर उपासना करते हैं!

*ऊं ह्रीं बगलामुखि, सर्वदुष्टानां वाचं पदस्तंभय!*
*जिंव्हा कीलय बुद्धिं विनाशयहीं ऊँ स्वाहा!!

माँ पीताम्बरा पीठ मध्यप्रदेश के दतिया में है। यह एक सिद्धपीठ है। तान्त्रिक लोग इसे तंत्रविद्या का आदि तीर्थ बताते हैं।
दतिया पुराना नाम दंतेश्वरी के इस मंदिर में माँ बगुलामुखी विराजमान हैं, जो दश महाविद्यायों में एक हैं।

ऐसी मान्यता है कि जिस शहर में मां बगलामुखी विराजमान होती हैं, वह नगर प्राकृतिक आपदाओं से सदैव मुक्त रहता है।
पूरी दुनिया में मां बगलामुखी के द्वापरयुगीन स्वयंभू सिद्धपीठ केवल तीन हैं—पहला नलखेड़ा शाजापुर मप्र में, दूसरा नेपाल में और तीसरा बिहार में। ये सभी अघोरी तांत्रिकों की तपस्थली है।

तांत्रिक साधना के लिए मध्य प्रदेश में उज्जैन और दतिया के बाद तीसरा प्रमुख स्थान है- शाजापुर जिले में नलखेड़ा का सिद्ध बगलामुखी मंदिर!
नलखेड़ा कस्बे की पूरब दिशा में श्री बड़लावदा हनुमान मंदिर, मध्य में पंचमुखी हनुमान मंदिर और कस्बे के बाहर बुद्धि के प्रतीक श्रीगणेश का मंदिर है।

कस्बे के एकदम बाहर लक्ष्मण नदी के किनारे उत्तर-पश्चिम में मां बगलामुखी का प्राचीन मंदिर है। ऐसे मंदिरों की महत्ता के बारे में कहा भी गया है।

दाहिने होत भवानी, सम्मुख होत गणेश।
पांच देव रक्षा करें, ब्रह्मा, विष्णु, महेश।।

प्रतिमा महाभारतकालीन है। यहां युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर कौरवों पर विजय पाने के लिए मां की आराधना की थी।

यहां आज भी चमत्कार होते रहते हैं।
देश-विदेश से अनेक साधु-संत यहां तंत्र-साधना के लिए आते हैं । शास्त्रों के अनुसार मां बगलामुखी वह शक्ति हैं, जो रोग एवं शत्रु द्वारा कराये अधिकार को दूर कर देती हैं।

मां के बगलामुखी नाम से लोग यह अर्थ लगा लेते हैं कि मां का मुख बगुला पक्षी के समान है, लेकिन ऐसा नहीं है।

सही नाम बगला भी नहीं है, बल्कि वैदिक शब्द बग्ला है। इसी का अपभ्रंश शब्द बगला बन गया है। और इसी नाम से देवी की लोकप्रियता चली आ रही है।

पीतांबरा : दूसरा नाम बगलामुखी मां का दूसरा नाम पीतांबरा भी है। वैसे तो मां बगलामुखी की आराधना ज्यादातर तांत्रिक तंत्र-साधना के लिए किया करते हैं।
भारत में बुंदेलखंड की गौरवशाली धरती पर अनेक आध्यात्मिक शक्ति लाखों श्रद्धालुओं के लिए श्रद्धा का केंद्र ही नहीं बल्कि वरदान भी है।

इसी क्रम में देश का ऐसा ही एक अनुष्ठान स्थल ‘पीतांबरा पीठ’ दतिया में है, जो संपूर्ण भारत वर्ष में जन-मन का श्रद्धा केंद्र ही नहीं बल्कि तंत्र-साधकों को सिद्धि प्रदान करनेवाला अनुपम शक्ति सिद्ध पीठ है।

शक्ति पीठ के चमत्कार ….उत्तर प्रदेश के झांसी से दिल्ली रेल तथा सड़क मार्ग पर मां पीतांबरा का २७ कि. मी. की दूरी पर दतिया में विश्व विख्यात सिद्ध शक्ति पीठ स्थित है।
इस क्षेत्र की ऐतिहासिक महत्ता को सभी स्वीकारते हैं। यहां आकर दर्शनार्थी मन वांछित फल पाते हैं । इनके दरबार में सच्चे ह्रदय से की गयी प्रत्येक प्रार्थना सुनी जाती है।

देवी पीतांबरा की महिमा का बखान करते कई भक्त बताते हैं कि उन्होंने मां-पीतांबरा के दरबार में कई दुखियों के दुःखों और असाच रोगों को दूर होते देखा है। कुछ श्रद्धालु तो यहां तक कहते हैं कि उन्हें स्वयं कई बार देवी के समक्ष खड़े होने पर यह अनुभव हुआ है। जैसे वे शत्रुओं से भय रहित हो गये तथा देव मां ने उनके सभी दुःख हर, उन्हें असीम सुख दिये हैं।

5000 साल पुराना स्वयंभू शिवलिंग…. महाभारतकालीन मंदिर पीतांबरा पीठ को एक समर्थ शक्ति पीठ रूप में देशव्यापी प्रतिष्ठा हासिल कराने का परम् पूज्यवाद ब्रह्मलीन अनंत श्री विभूषित स्वामी जी महाराज को है!

सन् १९२९ में उनका दतिया में आगमन हुआ। कहा जाता है कि महाराज (स्वामीजी) बनारस होते हुए धौलपुर (राजस्थान) से यहां आये थे। उस समय यहां पांच हजार वर्ष पुराना महाभारतकालीन और बलि देकर स्थापित किया गया था।

दतिया में तब यहां चारो ओर घने जंगल के बीच एकमात्र चबूतरे पर जीर्ण-शीर्ण स्थिति में वन खंडेश्वर महादेव का एक छोटा-सा मंदिर था।

मंदिर के बारे में किदवंती है कि यह अश्वत्थामा द्वारा स्थापित है। पहले यह स्थान घोरतम वाम मार्ग यानि तांत्रिकों का था। इसके अत्यंत उप स्वभाव के कारण रात के समय किसी का यह आ पाना संभव नहीं था।

श्रद्धालु भक्तजन आगे बताते हैं कि महाराजजी ने दतिया आने के पश्चात उक्त स्थल पर मां पीतांबरा का ध्यान किया था। तत्पश्चात महाराजजी को उनके दी हुए। बस जिस कुटिया में उन्हें दर्शन हुए, उसी स्थान पर ज्येष्ठ कृष्ण गुरुवार पंचमी सन् १९३४-३५ में महाराजजी ने मां-पीतांबरा देवी की स्थापना की।

यह आज भी उसी स्थान पर यथावत् स्थापित है, तभी से यह स्थान पीतांबरा पीठ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

स्वामीजी महाराज मां-पीतांबरा के उपासक तथा बहुत बड़े तन्त्र ज्ञानी थे। उन्होंने काशी में संन्यास ग्रहण किया था।

महाराजजी का क्या नाम था? यह उन्होंने कभी किसी को नहीं बताया। उनकी ही कृपा से आज पीतांबरा पीठ अनुष्ठान की दृष्टि से साधकों के लिए देश का एक अद्वितीय और विशिष्ट स्थान बन गया है ।

पीतांबरा ही बगलामुखी…पीतांबरा का दूसरा नाम बगलामुखी भी है। बगलामुखी को अग्नि पुराण में दस महा विद्याओं में सिद्ध विद्या कहा गया है-
काली तारा महाविद्या षोडसी भुवनेश्वरी।
भैरवी छिन्न मस्ता च विद्या धूमावती तथा!
बगला सिद्ध विद्या च माताङ्गी कमलाऽऽत्मिका
एतादश महाविद्याः सिद्ध विद्याः प्रकीर्तिताः॥
तन्त्रशास्त्र के अनुसार इस देवी की साधना से शत्रुओं का स्तंभवन हो जाता है। यह साधक को भोग और मोक्ष दोनों ही प्रदान करती है।
दतिया की इस शक्तिपीठ पर मंत्रों द्वारा उन लोगों के असाध्य रोगों का उपचार भी होते देखा गया है, जिनको विशेषज्ञ चिकित्सकों ने लाइलाज घोषित कर दिया था।

नवरात्रि में इस स्थान पर की गयी साधना व्यक्ति को और भी अधिक समृद्ध बनाती है तथा विशेष फल देती है।

अनुष्ठान से व्यक्तिगत लाभ के अतिरिक्त यहां राष्ट्र तथा विश्व कल्याण के लिए भी अनुष्ठान होते हैं । सन् १९६२ में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया था और भारतीय सेना दबाव में थी, तब राष्ट्र-कर्तव्य को सर्वोपरि माननेवाले परम् पूज्य श्री स्वामीजी महाराज ने राष्ट्र रक्षा के लिए वूहद् अनुष्ठान किया था।
दिन में सहस्र चंडी यज्ञ और अनुष्ठान के मंत्रों का जाप होता था तथा रात्रि में १० बजे से प्रातः (ब्रह्ममुहूर्त) तक देवी धूमावती का अनुष्ठान होता था।

इससे चमत्कारिक प्रभाव यह हुआ कि जिस दिन यज्ञ की पूर्णाहुति हुई उसी दिन शाम को चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुलाने की घोषणा कर दी और युद्ध समाप्त हो गया।

*डॉ रमेश खन्ना*
*वरिष्ठ पत्रकार*
*हरीद्वार (उत्तराखंड)*

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