religion,धर्म-कर्म और दर्शन -172
religion and philosophy- 172
🌼मंत्र और बीज मंत्र में अंतर 🌼
मंत्र शब्दों का संचय होता है, जिसके जाप द्वारा इष्ट को प्राप्त कर सकते हैं और अनिष्ट बाधाओं से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।
मंत्र योग संहिता के अनुसार – ‘मंत्रार्थ भावनं जपः’
अर्थात् प्रत्येक मंत्र के अर्थ को जानकर ही जप करने पर अभीष्ट फल प्राप्त होता है।
मंत्र शब्द में मन् और त्र ये दो शब्द हैं। ‘मन्’ अर्थात् मन को एकाग्र करना और ‘त्र’ अक्षर का अर्थ त्राण अर्थात् रक्षा करना।
मंत्र एक ऐसी शक्ति है जिसके उच्चारण मात्र से प्रत्येक समस्या का समाधान प्राप्त किया जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि मंत्र जाप से हमारी अन्तःचेतना जाग्रत होकर सक्रिय हो उठती है। हमारे आसपास के वातावरण में भी सकारात्मक ऊर्जा प्रभावी हो जाती है।
धर्म शास्त्रों के अनुसार – ‘मनः तारयति इति मंत्रः’
अर्थात् मंत्रों में वह शक्ति होती है कि वो मानव को तार देते हैं। हर देवी देवता के अपने मंत्र होते हैं और उनके स्मरण मात्र से मानव के उन्नति और उसकी सफलता के द्वार खुलते हैं।
मंत्रों को मुख्यत: तीन प्रकार से श्रेणीबद्ध किया गया है – वैदिक मंत्र , तांत्रिक मंत्र और शाबर मंत्र।
वैदिक मंत्र – वैदिक संहिताओं की समस्त ऋचाएं वैदिक मन्त्र कहलाती हैं। धार्मिक कर्मकांडों में वैदिक मंत्रों का ही जप अथवा उच्चारण होता है। वैसे तो वैदिक मंत्रों को सिद्ध करने में काफी समय लगता है। लोकिन यदि उनको एक बार सिद्ध कर लिया जाए तो वे फिर कभी भी नष्ट नहीं होते हैं। मानव जीवन में उनका प्रभाव सदैव बना रहता है। जो कोई भी अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए वैदिक मंत्रों को सिद्ध कर लेता है, उसके जीवन पर मे उस मंत्र का प्रभाव सदा के लिए स्थापित हो जाता है।
तांत्रिक मंत्र-
तन्त्रागमों में प्रतिपादित मन्त्र तान्त्रिक मन्त्र कहलाते हैं। वैदिक मंत्रों को सिद्ध करने में कड़ी मेहनत और ध्यान की जरूरत होती है। लेकिन तांत्रिक मंत्र वैदिक मंत्र की अपेक्षा जल्दी सिद्ध हो जाते हैं और अपना फल भी मानव को जल्दी दे देते हैं। तांत्रिक मंत्र जितनी जल्दी सिद्ध होते हैं उतनी ही जल्दी उनका प्रभाव भी समाप्त हो जाता है। अर्थात् जितनी जल्दी तांत्रिक मंत्र अपना असर दिखाते हैं, उतनी ही जल्दी उनकी शक्ति भी क्षीण हो जाती है। तांत्रिक मंत्रों का प्रभाव वैदिक मंत्रों की अपेक्षा कम समय तक बना रहता है।
शाबर मंत्र-
वैदिक और तांत्रिक दोनों मंत्रों से शाबर मंत्र अलग होते हैं। शाबर मंत्र बहुत जल्द सिद्ध हो जाते है। यानी वह जातक को अपना प्रभाव जल्द देते हैं। ये मंत्र शीघ्र सिद्ध होते हैं इसलिए इनका प्रभाव भी ज्यादा देर तक नहीं रहता है।
तान्त्रिक मन्त्र तीन प्रकार के होते हैं- बीज मन्त्र, नाम मन्त्र एवं माला मन्त्र।
बीज मंत्र – दैवीय या आध्यात्मिक शक्ति को अभिव्यक्ति देने वाला संकेताक्षर बीज कहलाता है।
अपने आराध्य का समस्त स्वरूप, उनके बीज मंत्र में निहित होता है। ये बीज मन्त्र तीन प्रकार के होते हैं- मौलिक, यौगिक व कूट। जिन्हें कुछ विद्वान एकाक्षर, बीजाक्षर एवं घनाक्षर भी कहते हैं।
जब बीज अपने मूल रूप में रहता है, तब मौलिक बीज कहलाता है, जैसे- ऐं, यं, रं, लं, वं, क्षं आदि।
जब यह बीज दो वर्णों के योग से बनता है, तब यौगिक बीज कहलाता है जैसे- ह्रीं, क्लीं, श्रीं, स्त्रीं, क्षौं आदि।
इसी तरह जब बीज तीन या उससे अधिक वर्णों से बनता है तब यह कूट बीज कहलाता है।
बीज मन्त्रों में समग्र शक्ति विद्यमान होते हुए भी गुप्त रहती है। सभी बीज मंत्र अत्यंत कल्याणकारी होते हैं, जो अलग-अलग देवी-देवताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं ।
मन्त्र के प्रकार निर्धारण के लिए नित्यातन्त्र में वर्णित यह लक्षण द्रष्टव्य है—मन्त्रा एकाक्षराः पिण्डाः कर्तर्यो द्वयक्षरा मताः। वर्णत्रयं समारभ्य नवार्णावधिबीजकाः।।ततो दशार्णमारभ्य यावद्विंशतिमन्त्रकाः।अत ऊर्ध्वं गता मालास्तासु भेदो न विद्यते।। एक अक्षर वाले मंत्र को पिंड, दो अक्षर को कर्तरी,तीन अक्षर से नौ अक्षर तक के मंत्रों को बीज मन्त्र,दस अक्षर से बीस अक्षर तक का मन्त्र नाम होता है एवं बीस अक्षर से अधिक संख्या वाले मंत्रों को माला मंत्र कहते हैं। वैसे मन्त्र की तकनीकी व्याख्या सामान्यतः प्रचलित नहीं है और यह आवश्यक भी नहीं है। आपके प्रश्न के दूसरे हिस्से में आते हैं जहाँ आपने बीज शब्द का आध्यात्मिक महत्व पूछा है।
इस सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि संस्कृत का एक एक एक अक्षर मन्त्र है केवल उसका भावना भावित एवं गुरु प्रदत्त होना आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है। उच्चारण करने से भी यह स्पष्ट होता है कि अन्य भाषाओं जैसे की अंग्रेजी के अक्षरों का उच्चारण मात्र मुख एवं कण्ठ से ही होता है जब की संस्कृत के अक्षरों का उच्चारण नाभि कुण्ड (नाभि ऊर्जा क्षेत्र)से होता है।संस्कृत के वर्णों का उच्चारण शरीर के सभी ऊर्जा क्षेत्रों को प्रभावित करता है।
प्रभावित करना स्वाभाविक है भी क्योंकि इनका (वर्णों का )स्वयं ,परम पावन भूत भावन देवाधिदेव महादेव ने अपने डमरू निनाद से प्रणयन किया। नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम्।उद्धर्तुकामः सनकादि सिद्धानेतद्विमर्शेशिवसूत्रजालम्।। वैसे बीज मन्त्रों का आध्यात्मिक महत्व किसी वट वृक्ष के बीज से समझा जा सकता है जैसे छोटे से बीज में विशाल वट वृक्ष छुपा रहता है और उनके धरती में रोपण से पल्लवित होता है उसी प्रकार से बीज मन्त्र भी उपयुक्त क्षेत्र (साधक)मिलने पर वह पल्लवित,पुष्पित होता है। किन्तु यहां यह उल्लेखनीय है कि सभी प्रकार के मन्त्र चाहे वे एकाक्षरी हों या माला मंत्र एक समान ही प्रभावकारी होते हैं।
भगवान नारायण का बीज मंत्र ‘ॐ नमो: नारायणाय’
जप शुरू करने से पहले श्री गणेशाय नमः, श्री गुरुवे नमः, श्री सरस्वते नमः इन तीनों को ध्यान करना चाहिए।
किसी भी मंत्र को सिद्ध करने के लिए 41 दिन लगातार सुबह सूर्य उदय से पहले करना चाहिए।
मंत्र सिद्ध होने के बाद आप जिस समय पूजा करते है उस समय कर सकते है।
हम जिस भी मंत्र का जप करते है कभी किसी को नही बताना चाहिए।
नारायण/विष्णु मंत्र को तुलसी की माला से करना चाहिए।
मंत्र जप अगर मन में किया जाए तो उसका अधिक लाभ लेता है।
माला जपते समय तर्जनी उंगली का उपयोग न करें
यह क्लीं एक चमत्कारी मंत्र है। यह शक्ति का मूल स्रोत है।
इस शक्ति के प्रभाव से सम्मोहन, वशीकरण और आकर्षक व्यक्तित्व की प्राप्ति संभव है। कहा जाता है, कलयुग में साधना से सिद्धि आसानी से मिल जाती है, परंतु यह बात अधूरी ही है। साधना से सिद्धि प्राप्त हो सकती है, यदि साधना का नियोजन और सिद्धि की प्राप्ति का लक्ष्य आत्म उत्थान और जनकल्याण हो तो निश्चित ही सफलता हासिल होती हैं।
परंतु सावधान यदि आप शक्तियों का दुरुपयोग कर सम्मोहन वशीकरण जैसे तंत्र को किसी गलत दिशा में प्रवाहित करने का प्रयास करेंगे तो सिद्धि तो मिलेगी नहीं अपितु आपका और नुकसान हो जाएगा ।इसीलिए आदि ऋषियों ने इन साधना को अत्यंत गोपनीय करके रखा ताकि गलत कृत्य की आशा में कोई साधन इनका दुरुपयोग करने की भावना से स्वयं का अहित ना कर बैठे ।
गायत्री महाविज्ञान स्पष्ट वर्णन है की क्लीं एक शक्तिशाली बीज मंत्र है। जिस के प्रयोग से सहज और सुलभ रूप से आकर्षक व्यक्तित्व और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त हो सकती हैं।
इस बीज मंत्र को कुछ विद्वान कृष्ण का बीज मंत्र मानते हैं और कुछ विद्वान इसे शक्ति दायिनी महाकाली का बीज मंत्र मानते हैं। परंतु, मैं आपको यहां यह स्पष्ट करना अपना दायित्व समझता हूं कि इसे किसी खास पंथ या संप्रदाय से जोड़कर देखा जाना जरूरी नहीं है ।
इस बीज मंत्र की खोज जन कल्याण के लिए हुई है और सच्चा ध्यान और आस्था इसे सफलता के सोपान के रूप में निरूपित करेंगे। इसलिए इस बीज मंत्र शक्ति का प्रयोग किसी भी धर्म का कोई भी व्यक्ति कर सकता है इसमें प्रतिबंध नहीं है। यह वैज्ञानिक दृष्टि से ध्वनि विज्ञान के सिद्धांत का निरूपण करता है और आध्यात्मिक जगत में ध्यान की शक्ति से यह जागृत होकर जनकल्याण के मार्ग प्रशस्त करने में समर्थ है ।
करना कैसे है तो वो भी पढ़ लीजिये आप | ध्यान को पहले स्थिर करना सीख ले यह बहुत जरूरी है अब प्रश्न यह उठता है कि ध्यान को कैसे करें। इस प्रयोग को प्रारंभ करने से पूर्व ध्यान शुद्धि जरूरी है।
ध्यान शुद्धि का सरलतम उपाय जब भी अवसर मिले 2 मिनट से लेकर 1 घंटे तक जितना भी समय आपके पास उपलब्ध है अपनी श्वास को अंदर बाहर आते जाते देखे। इससे आपका ध्यान लग जाएगा ।जब ध्यान लगना शुरू हो जाए, तो फिर क्लीं बीज मंत्र का प्रयोग प्रारंभ कर दे।
इस प्रयोग को प्रतिदिन कम से कम 2 मिनट अवश्य करें और यदि ज्यादा करें तो और भी अच्छा है इससे लगाता आपके व्यक्तित्व में मैग्नेटिक पावर विकसित होगा जिससे सरलता से ही लोग आपकी ओर आकर्षित होंगे.
*डॉ रमेश खन्ना*
*वरिष्ठ पत्रकार*
*हरीद्वार (उत्तराखंड )*