religion,धर्म-कर्म और दर्शन -178

religion and philosophy- 178

🌺नवरात्रि विशेष 🌺

🪷दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का सही तरीका 🪷
नवरात्रि के 9 दिनों में इस समय दुर्गा सप्तशती पाठ करने से पाएंगे खूब लाभ
दुर्गा सप्तशती का पाठ यदि नवरात्रि में किया जाए तो वह विशेष फल देता है।
मान्यता है कि विशेष समय में दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाए तो व्यक्ति की मनोकामना जल्द पूरी होती है
सबसे पहले, नवार्ण मंत्र, कवच, कीलक, और अर्गला स्तोत्र का पाठ करें.

पाठ करने से पहले, पुस्तक को साफ़ जगह पर लाल कपड़ा बिछाकर रखें.

पूजन के लिए कुमकुम, चावल, और पुष्प का इस्तेमाल करें.

माथे पर रोली लगाकर पूर्वाभिमुख होकर चार बार आचमन करें.

पाठ करते समय, ब्रह्मचर्य और पवित्रता का ध्यान रखें.

पाठ जल्दबाज़ी में न करें और शब्दों का उच्चारण साफ़ और लय में होना चाहिए.

पाठ के दौरान बीच में न उठें और न बोलें.

पाठ करते समय सफ़ाई का विशेष ध्यान दें.

दुर्गा सप्तशती के 13 अध्याय को एक ही दिन में पूरा करने का विधान है.

अगर किसी वजह से पाठ पूरा न हो पाए, तो नौ दिनों में पूरा कर लें.

अगर आपको संस्कृत में पाठ करने में परेशानी हो, तो हिन्दी में भी पाठ कर सकते हैं.

पाठ करते समय, मन को इधर-उधर की बातों में न भटकने दें.
पाठ के दौरान गलती हो जाए, तो पाठ खत्म होने के बाद क्षमायाचना करें.
नवरात्रि का आरंभ हो चुका है अगले 9 दिनों तक माता रानी को प्रसन्न करने के लिए भक्त उनकी पूजा उपासना करेंगे। मान्यता है कि इन दिनों दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से व्यक्ति की मनोकामना जल्द पूरी होती है।
लेकिन, दुर्गा सप्तशती का पाठ अगर सही समय पर किया जाए तो माता रानी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
इन 9 दिनों में आप किस समय पाठ कर माता रानी की कृपा पा सकते हो।
ये समय दुर्गा सप्तशती पाठ के लिए सबसे उत्तम
आमतौर पर राहुकाल को अशुभ समय माना जाता है। लेकिन कुछ कार्यों में राहुकाल को बेहद शुभ माना जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, दुर्गा सप्तशती के पाठ और सिद्धियों के लिए बहुत ही अच्छा समय माना जाता है। दुर्गा सप्तशती एक बहुत ही बड़ी उपासना है।
वैसे तो दुर्गा सप्तशती का पाठ करना बहुत ही लाभकारी रहता है लेकिन, अगर इसका पाठ नवरात्रि के दिनों में नियमित रूप से किया जाए तो व्यक्ति को विशेष फल प्राप्त होता है। इसके पाठ मां दुर्गा प्रसन्न होती है और आपके घर में नकारात्मकता प्रवेश भी नहीं कर पाती है।
9 दिनों के लिए दुर्गा सप्तशती पाठ करने का शुभ समय

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नवरात्रि पहला दिन –
सुबह 7 बजकर 30 मिनट से 9 बजे तक
नवरात्रि दूसरा दिन –
दोपहर 3 बजे से 4 बजकर 30 मिनट तक
नवरात्रि तीसरा दिन –
12 बजे से 1 बजकर 30 मिनट तक
नवरात्रि चौथा दिन –
दोपहर 1 बजकर 30 मिनट से 3 बजे तक
नवरात्रि पांचवा दिन –
सुबह 10 बजकर 30 मिनट से 12 बजे तक
नवरात्रि छठा दिन –
सुबह 9 बजे से 10 बजकर 30 मिनट तक
नवरात्रि सातवां दिन –
शाम 4 बजकर 30 मिनट से
नवरात्रि आठवां दिन –
सुबह 7 बजकर 30 मिनट से 9 बजे तक
नवरात्रि नौवां दिन –
दोपहर 3 बजे से 4 बजकर 30 मिनट तक
दुर्गा सप्तशती पाठ के नियम

दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के लिए सबसे पहले नवार्ण मंत्र, कवच, इसके बाद कीलक और अर्गला स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
इसके बाद दुर्गा सप्तशती के पाठ का आरंभ करना चाहिए। अगर आप इस तरह का पाठ करेंगे तो आपकी मनोकामनाएं जल्द पूरी होंगी।
साथ ही मा दुर्गा प्रसन्न होकर अपनी विशेष कृपा आप पर बरसाएंगी।
जिन लोगों को संस्कृत में पाठ करने में परेशानी हो तो वह हिंदी में भी पाठ कर सकते हैं।
अशुद्ध पाठ नहीं करना चाहिए
इसलिए अगर आप हिंदी में आराम महसूस करते हैं तो उसी के पाठ करें।
शुद्ध पाठ करने से आपको पूर्ण फल की प्राप्ति होगी।
नवरात्रि में कलश क्यों बैठाते हैं, जानें कलश स्थापना का महत्व
शारदीय नवरात्रि में ज्यादातर घरों में कलश स्थापना की जाती है।
शास्त्रों में कलश को सुख-समृद्धि और मंगल कामनाओं का प्रतीक बताया गया है।
मां शक्ति की पूजा करने से पहले कलश स्थापना की जाती है और घट स्थापना करने से बिना किसी विघ्न के पूजा संपन्न हो जाती है। आइए जानते हैं कलश स्थापना का महत्व…

हिंदू धर्म में कोई भी शुभ कार्य करने से पहले कलश स्थापना करने का विधान रहा है। शास्त्रों में कलश को गणेशजी का प्रतीक बताया गया है और कलश स्थापना करने से पूजा का शुभ और मंगल फल मिलता है। बिना कलश स्थापना के कोई भी धार्मिक अनुष्ठान पूरा नहीं माना जाता है इसलिए हर साल शारदीय नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है।

कलश स्थापना से पहले जगह को गंगाजल से पवित्र किया जाता है और फिर स्थापना की जाती है। इसके बाद ही सभी देवी-देवताओं को पूजा स्थल पर आने के लिए आमंत्रित किया जाता है। नवरात्रि में माता की पूजा करते समय माता की प्रतिमा या तस्वीर के आगे कलश रखा जाता है। कलश स्थापना करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है और सुख-शांति के साथ समृद्धि भी बनी रहती है।

शारदीय नवरात्रि में कलश स्थापना करने से पहले कलश के चारों ओर अशोक के पत्ते लगाए जाते हैं और फिर लाल कपड़े में बांधकर नारियल रखा जाता है और कलावा से बांधा जाता है।
इसके बाद उसमें हल्दी की गांठ, सिक्का, लौंग, सुपारी, दूर्वा, अक्षत आदि चीजें रखी जाती हैं।
इसके बाद कलश पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाया जाता है।
कलश स्थापना करने से पहले बालू की वेदी भी बनाई जाती है, जिसमें जौ बोए जाते हैं। जौ धन-धान्य की देवी मां अन्नपूर्णा को प्रसन्न करने के लिए बोए जाते हैं। उनकी कृपा से घर में कभी भी धन-धान्य की कमी ना आए, यह प्रार्थना की जाती है।
कलश में जल इस बात का संकेत है कि वह हमारे मन की तरह शीतल और निर्मल बना रहे।
कलश पर जो स्वास्तिक लगाया जाता है, वह चार युगों का प्रतीक माना जाता है।
इसके बाद दीप जलाकर कलश पूजा की जाती है और मां दुर्गा का आह्वान करके माता को आमंत्रित किया जाता है।

 

*डॉ रमेश खन्ना*
*वरिष्ठ पत्रकार*
*हरीद्वार उत्तराखंड*

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