religion,धर्म-कर्म और दर्शन -57
religion and philosophy- 57
🏵️ वेदों में भरे हैं विश्वशांति के संदेश 🏵️
वेदों की शिक्षायें-🙏
आइये वेद के कुछ मन्त्रों का विश्लेषण करें,कैसी मानव भाईचारे की भावनाएं हैं वेदों में जिससे विश्व शांति का मार्ग दर्शन मिलता है ।
अज्येष्ठासो अकनिष्ठास एते सं भ्रातरो वावृधुः सौभाय ।-(ऋग्वेद ५/६०/५)
अर्थ:- परमात्मा कहता है कि हे संसार के लोगों ! न तो तुममें कोई बड़ा है और न छोटा।तुम सब भाई-भाई हो। सौभाग्य की प्राप्ति के लिए आगे बढ़ो।परमपिता परमेश्वर इस मन्त्र में मनुष्य-मात्र की समानता का उपदेश दे रहे हैं। इसके साथ साम्यवाद का भी स्थापन कर रहे हैं।
अथर्ववेद के तीसरे काण्ड़ के तीसवें सूक्त में तो विश्व में शान्ति स्थापना के लिए जो उपदेश दिये गये हैं वे अद्भूत हैं। इन उपदेशों जैसा उपदेश विश्व के अन्य धार्मिक साहित्य में ढूँढने से भी नहीं मिलेंगे।
वेद उपदेश देता है-
सह्रदयं सांमनस्यमविद्वेषं कृणोमि वः । अन्यो अन्यमभि हर्यत वत्सं जातमिवाघ्न्या ।।-(अथर्व० ३/३०/१)
अर्थ:- मैं तुम्हारे लिए एक ह्रदयता,एक मन और निर्वेरता करता हूं। एक-दूसरे को तुम सब और से प्रीति से चाहो,जैसे न मारने योग्य गौ आपने उत्पन्न हुए बछड़े को प्यार करती है।
वेद हार्दिक एकता का उपदेश देता है।.वेद आगे कहता है-
ज्यायस्वन्तश्चित्तिनो मा वि यौष्ट संराधयन्तः सधुराश्चरन्तः ।अन्यो अन्यस्मै वल्गु वदन्त एत सध्रीचीनान्वः संमनसस्कृणोमि ।।-(अथर्व० ३/३०/५)
अर्थ:-.बड़ों का मान रखने वाले,उत्तम चित्त वाले,समृद्धि करते हुए और एक धुरा होकर चलते हुए तुम लोग अलग-अलग न होओ,और एक-दूसरे से मनोहर व मिठा बोलते हुए आओ। तुमको साथ-२ गति वाले और एक मन वाले मैं करता हूं।इस मन्त्र में भी एक-दूसरे से लड़ने का निषेध किया गया है और मिलकर चलने की बात की गई है।
और देखिये-
सं गच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम् ।देवां भागं यथापूर्वे संजानाना उपासते ।।-
(ऋग्वेद १०/१९१/२)
अर्थ:-हे मनुष्यो ! मिलकर चलो,परस्पर मिलकर बात करो। तुम्हारे चित्त एक-समान होकर ज्ञान प्राप्त करें। जिस प्रकार पूर्व विद्वान,ज्ञानीजन सेवनीय प्रभु को जानते हुए उपासना करते आये हैं,वैसे ही तुम भी किया करो।
इस मन्त्र में भी परस्पर मिलकर चलने,बातचीत करने और मिलकर ज्ञान प्राप्त करने की बात कही गई है।.इस मन्त्र में भी वैचारिक और मानसिक एकता की बात कहकर वेद सन्देश देता हैँ-
समानी व आकूतिः समाना ह्रदयानि वः ।समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति ।।-(ऋ०१०/१९१/४)
अर्थ:-हे मनुष्यों ! तुम्हारे संकल्प समान हों,तुम्हारे ह्रदय परस्पर मिले हुए हों,तुम्हारे मन समान हों जिससे तुम लोग परस्पर मिलकर रहो।
एकता तभी हो सकती है जब मनुष्यों के मन एक हों। वेदमन्त्रों में इसी मानसिक एकता पर बल दिया गया है।
संगठन का यह पाठ केवल भारतीयों के लिए ही नहीं,अपितु इस धरा के सभी मनुष्यों के लिए है।यदि संसार के लोग इस उपदेश को अपना लें तो उपर्युक्त सभी कारण जिन्होंने मनुष्य को मनुष्य से अलग कर रखा है,वे सब दूर हो सकते हैं,संसार स्वर्ग के सदृश्य बन सकता है। वेद से ही विश्व शान्ति संभव है।
वेद का सन्देश संकीर्णता, संकुचितता, पक्षपात, घृणा जातीयता,प्रान्तीयता और साम्प्रदायिकता से कितना ऊंचा है।
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