Roti Movement that started from Haridwar, चौंका देंगे ये सत्य, हरिद्वार से शुरू हुए रोटी आंदोलन ने ब्रिटिश शासन को पहुंचाई थी बडी चोट,घबराये थे अंग्रेज।
Roti Movement that started from Haridwar, This truth will shock you, the Roti Movement that started from Haridwar had caused a big blow to the British rule, the British were scared.
स्वतंत्रता आंदोलन का सर्वेक्षण अभियान था रोटी आंदोलन
Roti Movement that started from Haridwar, रोटी आंदोलन स्वतंत्रता का ऐसा गुप्त आंदोलन था जिसके बारे में अंग्रेज अंत तक जानकारी नहीं जुटा सके थे, लेकिन ये शक्तिशाली आंदोलन पौराणिक नगरी हरिद्वार से शुरू हुआ, हरिद्वार को अगर हम स्वतंत्रता संग्राम की पौराणिक भूमि कहें तो कुछ ग़लत नहीं होगा।

क्योंकि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास भी तो इसी धार्मिक नगरी के धार्मिक उत्सव कुंभ मेले से शुरू हुआ था।
हरिद्वार कनखल क्षेत्र के दशनामी संन्यासी स्वामी ओमानंद ने सन् 1857 के कुंभ मेले में आजादी की क्रांति का सूत्रपात किया और कुंभ मेले को आजादी की क्रांति के प्रचार का सशक्त माध्यम बनाया।
स्वामी ओमानंद के शिष्य स्वामी पूर्णानंद और स्वामी पूर्णानंद के शिष्य स्वामी विरजानंद तथा विरजानंद के शिष्य स्वामी रामगिरी गोसाईं ने आजादी का अलख जगाया।
ये कह सकते हैं कि ये संत आजादी की प्रथम लड़ाई के सूत्रधार थे, गुलामी के प्रारम्भिक दौर से ही दासता के विरुद्ध अपने स्वर बुलंद करने वाले स्वामी ओमानंद दशनामी संन्यासी थे और दशनामी संन्यासियों का संबंध आदि गुरु शंकराचार्य और उनके द्वारा गठित दशनामी अखाड़ों से रहा है।
संतों के अखाड़े आजादी की लड़ाई के बड़े स्तम्भ माने जाते हैं,सन् 1857 के हरिद्वार पूर्ण कुंभ मेले में आने के लिए स्वामी ओमानंद, पूर्णानंद और विरजानंद ने नाना साहेब, अजिमुल्ला खां, बाला साहेब, तांत्याटोपे और बाबू कुंवर सिंह को न्यौता भेजा, न्यौता पा कर सभी सेनानी कुंभ मेले में आये।
कुंभ मेले में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध संघर्ष की सांझी योजना बनाई गई,घर घर रोटी, आंदोलन की भूमिका बनाई गई।
संदेश था कि जो घर रोटी ले ले उसे स्वतंत्रता आन्दोलन के लिए सहमत माना जाये,यदि कहें कि ये स्वतंत्रता आन्दोलन का सर्वेक्षण अभियान था तो ग़लत नहीं होगा।
सर्वेक्षण इस बात का कि यदि स्वतंत्रता पाने के लिए आजादी का आन्दोलन छेड़ा जाये तो लोगों की सहमति कहां तक है,जो रोटी ले लेता,वो रोटियां आगे वितरित करता था इस तरह 1857 का हरिद्वार कुंभ मेले से शुरू हुए रोटी आंदोलन ने अंग्रेज़ सरकार की मनोदशा को हिला कर रख दिया था।
बेहद गुप्त रूप से क्रियान्वित रोटी आंदोलन रातों-रात देश के कोने-कोने तक पसर गया,1857 के कुंभ मेले में संतों और सेनानियों की संयुक्त क्रांति योजना में आगे आगे रोटी संदेश और पीछे-पीछे क्रांति की मशाल जल उठी।
1857 के कुंभ मेले से योजना के अनुसार आजादी की प्रथम लड़ाई को अंजाम देने अनेकों युवक और साधू सन्यासी आजादी की क्रांति संदेश प्रसारित करने निकल पड़े, हरिद्वार 1857 के कुंभ मेले के धार्मिक यज्ञों और अनुष्ठानों से उठी आजादी की ज्वाला, उत्तर में मेरठ,पूर्व में बारिक पुर और दक्षिण में मलोट की तरफ क्रांतिकारियों ने प्रज्वलित कर दी थी।
हरिद्वार उन दिनों सहारनपुर जनपद का एक अंग हुआ करता था।
सहारनपुर,रुड़की हरिद्वार और तमाम ग्रामीण क्षेत्रों बुद्धाखेडी,क्रौंधकलां,फुटला, ज्वालापुर, कनखल में स्वतंत्रता संग्राम। की अग्नि प्रज्जवलित हो गई थी।
स्वतंत्रता आन्दोलन में आम जनता के शामिल होने की सहमति पंहुचाने वाला रोटी आंदोलन परवान चढ़ चुका था, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, गुजरात, कलकत्ता, मध्य भारत में रोटी आंदोलन, अंग्रेज शासकों के लिए बड़ा रहस्य बन गया था,इस आंदोलन में बड़ी संख्या में पुलिस कर्मी भी शामिल थे।
1857 में ही ईस्ट इंडिया कंपनी के समर्थक, डाक्टर गिल्बर्ट हैडो ने अपनी ब्रिटेन में रहने वाली बहन को रोटी आंदोलन को रहस्यमयी आंदोलन कहते हुए पत्र लिखा था जो रोटी आंदोलन के अंग्रेजी सरकार पर गहरे दबाव का एक साक्ष्य कहा जा सकता है।
इसके अलावा अंग्रेज लेखक जे डब्ल्यू शेरर ने अपनी किताब ” लाइफ फ़ॉर द इंडियन रिवाल्ट ” में रोटी आंदोलन को और स्वतंत्रता आन्दोलन को कुशल रणनीति से लडा गया शानदार आंदोलन कहा है।
1857 की क्रांति की आग हरिद्वार में भी जबरदस्त विद्रोह के रूप में नजर आने लगी थी।
सन् 1857 की 21 मई और 26 मई को हरिद्वार, कनखल और ज्वालापुर में सुलग रही क्रांति को अंग्रेजों ने निर्ममता पूर्वक कुचल दिया।
वेयर्ड स्मिथ और राबर्ट्सन ने क्रांतिकारियों का निर्मम दमन किया, अंग्रेजी शासकों की अत्याचार की आंधी में भी स्वतंत्रता की लौ सेनानियों के दिलों में न तो ठंडी हुई और न बुझी।