Uttarakhand andolan, कुछ इस तरह बने दिवाकर भट्ट उत्तराखंड आंदोलन के हीरो।
Uttarakhand movement, this is how Diwakar Bhatt became the hero of the Uttarakhand movement.
मेरी कलम से यादें – शशि शर्मा
Uttarakhand andolan, हरिद्वार की सड़कों पर गरजती बुलेट की आवाज दूर दूर तक गूंज उठा करती बुलेट पर सवार एक व्यक्ति जिसके कंधे पर लटकी होती थी एक लाईसेंसी राईफल,उसे देखने लोग बाहर तो निकल ही आते थे।
बात है वर्ष 1985-86 की,उस समय हरिद्वार एक छोटा, शांत और पिछडा सा शहर था, शाम होते तक लोग सड़कों पर अपनी खाट बिछा लेते या पत्थर की सलैबों, सीढियों पर आ बैठा करते।
ऐसे शांत हरिद्वार शहर में दो बुलेट मोटरसाइकिलें हुआ करतीं थीं एक हरिद्वार कोतवाल के पास और दूसरी लम्बे छरहरी देह वाले लगभग 40- 45 साल के व्यक्ति दिवाकर भट्ट के पास, दोनो ही मोटरसाइकिलों की आवाज से सड़कों पर थरथराहट सी हो जाती, और तब ये मोटरसाइकिलें लोगों के लिए अजुबा थीं 1985 में जब मैंने डीएवी से एम ए करते हुए, प्रोफेशन के तौर पर देहरादून के एक दैनिक अख़बार को ज्वाइन किया, तो एक महिला का पत्रकार होना लोगों के लिए एक और अजुबा था, तब तक उत्तराखंड आंदोलन की नींव रखी जा चुकी थी 1979 में अस्तित्व में आये उत्तराखंड क्रांति दल की, 1985-86 में छोटी-छोटी बैठकें हरिद्वार में कहीं कहीं हो जाया करती थीं।
हरिद्वार में उत्तराखंड आंदोलन की बैठकों का ठिकाना तरुण हिमालय का परिसर होता था कभी कभार दो चार महीने में एक आध बैठक हो जाती दिवाकर भट्ट उसे लीड करते और त्रिलोक चंद भट्ट उसकी विज्ञप्तियां लिख कर छपवाने के लिए मेरे पास लाया करते थे।
वर्ष 1989 में मैंने पीटीआई ज्वाइन कर लिया तब उत्तराखंड आंदोलन की खबरें पीटीआई से जारी होनी शुरू हुई तो तमाम लिडिंग अखबारों ने ख़बरों को उठाया और आंदोलन की खबरें विश्व के मिडिया के सामने भी आई, ख़बरों का रिस्पांस देख कर आंदोलनकारीयों का साहस भी बढ़ने लगा।
अब विज्ञप्तियों की जगह बैठकों में व्यक्तिगत निमंत्रण ने ले ली थी, आंदोलनकारी वरिष्ठ नेता अब हरिद्वार में दिवाकर भट्ट के आवास पर आ कर प्रेसवार्ताऐं करने लगे काशी सिंह ऐरी, त्रिवेंद्र पंवार और अन्य कई लोगों ने हरिद्वार पहुंच कर प्रेसवार्ताऐं की।
आंदोलन को पंख लग चुके थे,1993 श्रीनगर में उत्तराखंड क्रांति दल के अधिवेशन में शिरकत करने के लिए श्रीनगर पहुंचे दिवाकर भट्ट ने मुझे श्रीनगर आ कर डालमिया धर्मशाला में होने वाले अधिवेशन को पीटीआई के लिए न्यूज़ कवर करने को कहा लेकिन मैंने उन्हें अपनी सीमा बताते हुए कहा यदि पीटीआई दिल्ली से मुझे अधिवेशन कवर करने की अनुमति मिलती है तभी मै कवर कर सकूंगी मैंने उन्हें पीटीआई दिल्ली से बात करने को कहा, तब उन्होंने पीटीआई दिल्ली से बात की और दिल्ली से सीता राम राव जी के अनुमति पत्र के साथ मै अधिवेशन को कवर करने श्रीनगर पहुंची और प्रशासन को,बडे प्रशासनिक अधिकारी एसडीएम हुआ करते थे उस समय उन्होंने हमारे ठहरने की व्यवस्था पीडब्ल्यूडी गेस्ट हाउस में की और समाचार प्रेषण की व्यवस्था करवाई।
माहौल बहुत गरम था, आंदोलनकारी उग्र थे भट्ट जी से मुलाकात हुई अन्य लोगों के साथ ही इंद्रमणि बडोनी से भी मुलाकात हुई बातचीत कर कवरेज भेजी,शोर उठा,गूंज उठी कि दिवाकर भट्ट को फील्ड मार्शल बना दिया गया है, दरअसल पर्वतीय क्षेत्रों के अधिकांश लोग सेना से जुड़े होने के कारण अपने आंदोलन से जुड़े आंदोलनकारी लोगों को इंद्रमणि बडोनी ने युद्धक सेना मानते हुए दिवाकर भट्ट के लिए फील्ड मार्शल की उपाधि तय की थी, क्यों कि दिवाकर भट्ट आंदोलन का प्रमुख चेहरा बन कर उभर रहे थे, मेरे पीटीआई से जारी होने वाले समाचारों और बयानों में अधिकांश दिवाकर भट्ट से होने वाली बात चीत और आंदोलन की मिलने वाली जानकारी ही हुआ करती थी अतः अब केंद्र सरकार और विदेशी मिडिया भी दिवाकर भट्ट के नाम को पहचानने लगे थे।
दिवाकर भट्ट की आंदोलन के प्रति जांबाजी इस कदर थी कि वो आंदोलन के प्रति अपने कर्तव्यों को निर्वहन करते हुए अपने परिवार के प्रति लापरवाह हो गये थे, बीमार पत्नी के देहांत के समय वो मौजूद नहीं थे संगठन के लिए ही कहीं खुद को खपा रहे थे, पत्नी के संस्कार के लिए बहुत इंतजार के बाद भट्ट अपने घर पहुंच सके थे, आंदोलन के बीच ही उन्होंने अपने युवा पुत्र को भी खोया, लेकिन आंदोलन की अगली पंक्ति के संघर्ष को नहीं छोड़ा।
1993 के बाद पीटीआई दिल्ली ने मुझे पूरे पर्वतीय क्षेत्रों से आंदोलन को कवर करने की अनुमति दे दी थी, श्रीयंत्र टापू का उग्र आंदोलन, दिवाकर भट्ट का लापता हो जाना, अचानक खैंट पर्वत पर धरना भूख हड़ताल, उनका धरना कवर करने में हमें जान जोखिम में डालनी पडी, कुछ आंदोलनकारीयों की अगुवाई में हम मतलब मैं और मेरे पति जो पीटीआई के लिए मान्यता प्राप्त फोटोजर्नलिस्ट के रूप में काम करते थे हमारे खैंट पर्वत पर चढते हुए हाथ पैर छिल गये थे, वहां पुलिस का पहुंचना नामुमकिन था हमें देखते ही दिवाकर भट्ट प्रसन्न हो गए साक्षात्कार लिया, कवरेज कर हम वापस लौटे।
दिवाकर भट्ट के लिए हम दोनों पति-पत्नी स्टार पत्रकार थे हमारे पहुंचने तक वो प्रेस कांफ्रेंस को रोके रखते बाद में उत्तराखंड क्रांति दल बिखरा, नेताओं की महत्वाकांक्षाऐं जाग चुकी थी उत्तराखंड अलग राज्य आज बना,कल बना इस उम्मीद ने सभी नेताओं के मन में सत्ता के सपने जगा दिये थे,अगर उस समय उत्तराखंड क्रांति दल बिखरता नहीं मजबूत रहता तो शायद तस्वीर कुछ और होती, लेकिन राज-काज के संसाधनों का अभाव और सत्ता चलाने की अनुभवहीनता ने सत्ताधारी पार्टीयों को अवसर दिया, पहली सरकार जब बनी तो लगता था संसाधन हीन राज्य का क्या होगा शायद केंद्र शासित प्रदेश बने, बहरहाल इन राजनैतिक कहानियों के बीच, एक जीवट से भरे जांबाज आंदोलनकारी के बलिदान और समर्पण का स्थान उत्तराखंड में ऊंचा ही रहेगा अंत तक राज्य आंदोलनकारीयों की फेहरिस्त में उनका नाम नहीं था, राज्य के अस्तित्व में आने के बाद भट्ट सरकार में मंत्री पद लेकर भी राज्य के स्वरूप से संतुष्ट नहीं थे वो हमेशा कहते जैसा हमने सोचा था वैसा नहीं बना उत्तराखंड, उनकी इस टीस को भले ही नजरअंदाज कर दिया जाये लेकिन उत्तराखंड राज्य के लिए उनके संघर्षों को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा दिवाकर भट्ट नाम उत्तराखंड के इतिहास में दर्ज रेखांकित व्यक्तित्व था, है और हमेशा रहेगा इच्छा थी कि उस समय के कुछ फोटो जो मेरे पास अभी भी सुरक्षित है इस पोस्ट के साथ डाल सकूं लेकिन पुरानी चीजों को अचानक ढूंढना जरा कठिन होता है जब भी मिले तो जरूर शेयर करुंगी।
