*✨ज्ञान, मूल्य और मानवता के पुरोधा भारत रत्न भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी की पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि*
*💥भारतीय संस्कृति के संवाहक, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को आज की परमार्थ गंगा आरती की समर्पित*
*💐शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान से संवेदना तक*
*स्वामी चिदानन्द सरस्वती*

ऋषिकेश। आज जब भारत और विश्व शिक्षा, मूल्यों और शान्ति की खोज में आगे बढ़ रहा है, तब हमें उन महान व्यक्तित्वों को स्मरण करना चाहिए जिन्होंने शिक्षा को केवल किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि आत्मा की जागृति और समाज की सेवा का साधन माना। ऐसे ही एक युगद्रष्टा, भारत के पूर्व राष्ट्रपति, महान दार्शनिक और शिक्षक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को आज उनकी पुण्यतिथि पर शत्-शत् नमन।
डॉ. राधाकृष्णन जी का जीवन भारतीय संस्कृति, वेदांत दर्शन और शिक्षा की उच्च परंपरा का जीवंत उदाहरण है। वे मानते थे कि शिक्षा केवल सूचनाओं का संचय नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण का माध्यम होनी चाहिए।
उन्होंने अपनी विलक्षण प्रतिभा, कठोर परिश्रम और दर्शन के प्रति गहन लगाव से न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में भारतीय विचारधारा का परचम लहराया। उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भारतीय दर्शन पढ़ाया और अपनी पुस्तकों के माध्यम से वेदांत, उपनिषदों और भगवद्गीता को पश्चिमी बुद्धिजीवियों के बीच लोकप्रिय किया। वे मानते थे कि पूर्व और पश्चिम के दर्शन के बीच संवाद, मानवता को नई दिशा दे सकता है।
वे भारत के पहले उपराष्ट्रपति और बाद में राष्ट्रपति भी बने, लेकिन उनके लिए सबसे गौरवपूर्ण पहचान हमेशा एक शिक्षक की रही। डॉ. राधाकृष्णन जी ने शिक्षा को आत्मोन्नति, सामाजिक समरसता और वैश्विक भाईचारे का मार्ग माना। उनका विश्वास था कि ज्ञान का अंतिम उद्देश्य करुणा है, उनका यह विचार आज के समय में और भी प्रासंगिक है।
आज जब युवा पीढ़ी को स्वतंत्र सोच, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और नैतिक मूल्य चाहिए, तब डॉ. राधाकृष्णन जी का जीवन एक आदर्श बनकर सामने आता है। डॉ. राधाकृष्णन जी का जीवन इस बात का प्रतीक था कि धर्म संकीर्णता नहीं, बल्कि सहिष्णुता और आत्मा की खोज है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आज जब विश्व युद्ध, पर्यावरण संकट, आर्थिक विषमता और सांस्कृतिक विघटन के दौर से गुजर रहा है, तब डॉ. राधाकृष्णन जी का संदेश, ज्ञान, करुणा और संवाद एक प्रकाशस्तंभ की तरह है। भारत की नई शिक्षा नीति, आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ते कदम और वैश्विक मंचों पर भारत की भूमिका, इन सभी को डॉ. राधाकृष्णन जी जैसे विचारशील व्यक्तित्वों की दृष्टि से और अधिक सशक्त दिशा मिल सकती है।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी एक विचारक या शिक्षक ही नहीं थे, वे भारतीय आत्मा के प्रतिनिधि थे। वे उस भारत के प्रतीक थे जो ज्ञान, सहिष्णुता और सेवा में विश्वास रखता है। उनकी पुण्यतिथि पर हम न केवल उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करें, बल्कि यह संकल्प लें कि हम शिक्षा को एक मिशन बनाए, ऐसा मिशन जो जीवन को सुंदर, समाज को समरस और विश्व को शांतिमय बनाए।
इस पुण्य तिथि पर, आइए हम सभी मिलकर डॉ. राधाकृष्णन के दिखाए पथ पर चलें, ज्ञान के दीप जलाएँ, शिक्षा को मूल्य-आधारित बनाएं, और भारत को एक समृद्ध राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ाए। आज उनकी पुण्यतिथि पर यही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी एक ऐसे भारत का निर्माण जो बुद्धि, प्रेम और विवेक का प्रतीक बने।

By Shashi Sharma

Working in journalism since 1985 as the first woman journalist of Uttarakhand. From 1989 for 36 years, he provided his strong services for India's top news agency PTI. Working for a long period of thirty-six years for PTI, he got his pen ironed on many important occasions, in which, by staying in Tehri for two months, positive reporting on Tehri Dam, which was in crisis of controversies, paved the way for construction with the power of his pen. Delivered.

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