religion,धर्म-कर्म और दर्शन -177

religion and philosophy- 177

🌺देवराज इन्द्र ने बनबाया था- करोड़ो साल पहले मिनाक्षी मंदिर 🌺

आइए बताते हैं आपको एक अद्भुत मंदिर के बारे में

यह मंदिर देवराज इन्द्र ने बनबाया था- करोड़ो साल पहले

मीनाक्षी अम्मा मंदिर – इसी मंदिर में शिव विवाह हुआ था

मीनाक्षी मंदिर, मदुरई – जिसके आगे दुनिया की प्रत्येक सुंदर से सुंदर चीज कुछ नही …

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“कांची तु कामाक्षी, मदुरै मिनाक्षी,

दक्षिणे कन्याकुमारी ममः शक्ति रूपेण भगवती ।।

नमो नमः नमो नमः।।

अर्थात , शक्ति का कांची ने नाम कामाक्षी जी, मदुरई में मीनाक्षी, दक्षिण में कन्याकुमारी ।

यहां के लोगो की मान्यता है, की भगवान शिव का विवाह इसी मंदिर में हुआ था । मां का यह विशाल भव्य मंदिर तमिलनाडू के मदुरै शहर में है।

यह मंदिर मीनाक्षी अम्मन मंदिर प्राचीन भारत के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। माँ मीनाक्षी का यह अम्मन मंदिर को विश्व के नए सात अजूबों के लिए नामित किया गया है।

इस मन्दिर का स्थापत्य एवं वास्तु आश्चर्यचकित कर देने वाला है, जिस कारण यह आधुनिक विश्व के सात आश्चर्यों की सूची में प्रथम स्थान पर स्थित है, एवं इसका कारण इसका विस्मयकारक स्थापत्य ही है।

इस इमारत समूह में 12 भव्य गोपुरम हैं, जो अतीव विस्तृत रूप से शिल्पित हैं। इन पर बडी़ महीनता एवं कुशलतापूर्वक रंग एवं चित्रकारी की गई है, जो देखते ही बनती है। यह मन्दिर तमिल लोगों का एक अति महत्वपूर्ण द्योतक है, एवं इसका वर्णन तमिल साहित्य में पुरातन काल से ही होता रहा है।

पौराणिक कथा

हिन्दू आलेखों के अनुसार, भगवान शिव पृथ्वी पर सुंदरेश्वर रूप में स्वयं देवी पार्वती पृथ्वी पर मीनाक्षी से विवाह रचाने अवतरित हुए। इस विवाह को विश्व की सबसे बडी़ घटना माना गया, जिसमें लगभग पूरी पृथ्वी के लोग मदुरई में एकत्रित हुए थे। भगवान विष्णु स्वयं, अपने निवास बैकुण्ठ से इस विवाह का संचालन करने आये।

ईश्वरीय लीला अनुसार इन्द्र के कारण उनको रास्ते में विलम्ब हो गया। इस बीच विवाह कार्य स्थानीय देवता कूडल अझघ्अर द्वारा संचालित किया गया। बाद में क्रोधित भगवान विष्णु आये और उन्होंने मदुरई शहर में कदापि ना आने की प्रतिज्ञा की।

और वे नगर की सीम से लगे एक सुन्दर पर्वत अलगार कोइल में बस गये। बाद में उन्हें अन्य देवताओं द्वारा मनाया गया, एवं उन्होंने मीनाक्षी-सुन्दरेश्वरर का पाणिग्रहण कराया।

यह विवाह एवं भगवान विष्णु को शांत कर मनाना, दोनों को ही मदुरई के सबसे बडे़ त्यौहार के रूप में मनाया जाता है, जिसे चितिरई तिरुविझा या अझकर तिरुविझा, यानि सुन्दर ईश्वर का त्यौहार ।

इस दिव्य युगल द्वारा नगर पर बहुत समय तक शासन किया गया। यह वर्णित नहीं है, कि उस स्थान का उनके जाने के बाद्, क्या हुआ?

यह भी मना जाता है, कि इन्द्र को भगवान शिव की मूर्ति शिवलिंग रूप में मिली और उन्होंने मूल मन्दिर बनवाया। इस प्रथा को आज भी मन्दिर में पालन किया जाता है ― त्यौहार की शोभायात्रा में इन्द्र के वाहन को भी स्थान मिलता है।

*डॉ. रमेश खन्ना*
*वरिष्ठ पत्रकार*
*हरीद्वार (उत्तराखंड)*

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