religion,धर्म-कर्म और दर्शन -182
religion and philosophy- 182
🌼देव द्वार पर कच्छप अर्थात कछुआ 🌼
ज्यादातर मंदिरो मे आपको प्रवेशद्वार के बाहर एक कछुआ दिखाई देगा!
कछुआ एक सात्विक गुणप्रधान प्राणी है।
कछुआ को भगवान विष्णु से ऐसा वरदान मिला है। इसलिए, हर मंदिर के सामने एक कछुआ होता है। सत्वगुण के कारण कछुए ने ज्ञान प्राप्त कर लिया है।
कछुआ ने भगवान विष्णु के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। इसलीये, कछुए की गर्दन हमेशा नीचे झुकी रहती है। उनका ध्यान हमेशा देवता के चरणों पर रहता है।
कुछ मंदिरों में कछुए की गर्दन उठी हुई प्रतीत होती है। गर्दन उठाने का अर्थ है कुंडलिनी जागृत करना। भगवान विष्णु के आशीर्वाद से, कछुए की कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है।
आध्यात्मिक उत्थान की इच्छा जगाने के लिए कछुआ मंदिर में हमेशा के लिए रहता है।
एक कछुए के लक्षण:
एक कछुए के 6 अंग होते हैं (4 पैर 1 मुंह 1 पूंछ = 6) और एक इंसान के 6 दुश्मन होते हैं
काम, क्रोध, वासना, लालच, प्रलोभन और ईर्षा !
भक्त को यह सब छोड़ कर मंदिर में आना चाहिए, जैसे कछुआ यह सब छोड़ कर सर झुकाये होता है।
जिस तरह से एक कछुआ अपने बच्चे को प्यार देकर प्यार को बढ़ाता है, उसी तरहा भगवान की हम पर एक प्यारभरी नजर होनी चाहिए, ऐसी भावना है।
जिस तरहा कछुआ अपने छ: अंगो से नमष्कार करता है, उसी तरहा हमे भी भगवान को पूजना होगा, इसकी याद दिलानेके लिये कछुआ मंदिर में होता है।
जिस तरह एक कछुआ अपने सभी इंद्रियों को अपनी इच्छानुसार सिकोड़ सकता है, उसी तरह एक भक्त के लिए भी संयम बरतना और मंदिर में भगवान के सामने जाते समय अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करना महत्वपूर्ण है। कछुआ हमें सिखाता है कि इंद्रियों को काबू मे रखे बिना प्रभु की भक्ति संभव नहीं है।
कछुए को नमस्कार करने और मंदिर परिसर में प्रवेश करने का अर्थ है :
मंदिर में प्रवेश करते वक्त कछुए का अभिवादन किया जाता है। उसे नमस्कार करने के बाद ही मंदिर मे प्रवेश किया जाता है। इसका मतलब यह है कि भगवान की सच्ची कृपा कछुए के गुणों का अनुमोदन करने के बाद ही होती है।
Dr.Ramesh Khanna
Senior Journalist
Haridwar.