संस्कृत शिक्षा को, उच्च शिक्षा विभाग के अंतर्गत समाहित करने को, राज्यपाल ने बुलाई बैठक।
संस्कृत हमारी द्वितीय राजभाषा है इसके समेकित विकास को हर प्रयत्न जरुरी- राज्यपाल गुरमीत सिंह
राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) की अध्यक्षता में राजभवन में संस्कृत शिक्षा को उच्च शिक्षा विभाग के अंतर्गत समाहित किए जाने के संबंध में बैठक हुई।
इस बैठक में उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत सहित शासन के उच्चाधिकारी उपस्थित रहे।
बैठक में उच्च शिक्षा मंत्री डाक्टर धन सिंह रावत ने कहा कि उनके द्वारा भी संस्कृत शिक्षा को उच्च शिक्षा विभाग में लाए जाने हेतु प्रयास किए गए हैं लेकिन इस विषय पर अभी तक कोई निर्णय नहीं हो पाया है।
उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा विभाग के अंतर्गत नहीं लाए जाने से विश्वविद्यालय स्तर पर यूजीसी और नैक जैसी संस्थाओं के लाभ प्राप्त नहीं हो पा रहे हैं। पूर्व में भी इस प्रकरण के लिए एक समिति का गठन किया गया था जिसकी रिपोर्ट शासन को प्रेषित की गयी।
बैठक में मुख्य सचिव डॉ. एस.एस. संधु ने सुझाव दिया कि इस प्रकरण हेतु संस्कृत के शिक्षाविदों एवं विद्वानों की एक कमेटी बनाई जाय।
कमेटी की रिपोर्ट के बाद उनके सुझावों को लागू करने से पूर्व एक बैठक कर समाधान निकाला जाएगा। इस दौरान सचिव संस्कृत शिक्षा चंद्रेश कुमार ने कहा कि संस्कृत महाविद्यालयों में यूजीसी के मानकों के अनुरूप फैकल्टी की नियुक्ति न होना इसका मुख्य कारण है।
राज्यपाल ने कहा कि उत्तराखण्ड आने के पश्चात संस्कृत शिक्षा को उच्च शिक्षा विभाग के अंतर्गत लाए जाने हेतु कुलपति, संस्कृत शिक्षकों एवं छात्रों द्वारा, उनके शैक्षणिक हितों को देखते हुए बार-बार निवेदन किया जाता रहा है।
उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य संस्कृत भाषा के समेकित विकास एवं उन्नयन को ध्यान में रखा जाना चाहिए। इसके लिए वह उच्च शिक्षा विभाग में हो या संस्कृत शिक्षा विभाग में हो। उन्होंने कहा कि इस प्रकरण हेतु मुख्य सचिव के सुझाव के अनुरूप संस्कृत के शिक्षाविदों एवं विद्वानों की एक कमेटी बनाई जाय। यह कमेटी संपूर्ण तथ्यों का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट तीन माह में प्रस्तुत करेगी। इसके पश्चात कमेटी की रिपोर्ट के पश्चात बैठक कर प्रकरण पर उचित कार्यवाही की जाएगी। उन्होंने कहा कि इस हेतु शासन स्तर पर भी विधिक परीक्षण कराया जाए।
राज्यपाल ने कहा कि उत्तर प्रदेश के संमूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय सहित दिल्ली स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालयों से भी सुझाव लिए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि संस्कृत हमारी द्वितीय राजभाषा है इसके समेकित विकास के लिए हर संभव प्रयास किए जाएंगे।
संस्कृत शिक्षा के गुणवत्तापूर्ण अध्ययन, अध्यापन एवं उन्नयन में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जाएगी।