जिला मुख्यालय उत्तरकाशी में करोड़ों रुपये खर्च कर किए गए विकास कार्यों की बदहाली प्रशासन की लापरवाही का जीता-जागता उदाहरण बन गई है। विकास कार्यों के नाम पर नई-नई सुविधाएं स्थापित तो कर दी जाती हैं, लेकिन उनके रखरखाव और संचालन की सुध लेने वाला कोई नहीं है। ताजा मामला कलक्ट्रेट परिसर का है, जहां वीआईपी गेट कभी-कभार खुलता है, लेकिन पैदल आवाजाही हर रोज होती है। खासकर, कलक्ट्रेट के अधिकांश अधिकारी इसी गेट से आते-जाते हैं। बावजूद इसके, यहां की बुनियादी सुविधाओं का कोई ध्यान नहीं रखा जा रहा है।

  • बजट खर्च, लेकिन सुविधाएं नदारद! उत्तरकाशी में लापरवाही की हदें पार
  • उत्तरकाशी में बेक़दरी का नमूना वाटर एटीएम, पानी नहीं; टंकी, पर सुविधा नहीं

शहर में सार्वजनिक स्थलों पर वाटर एटीएम लगाए गए थे, ताकि लोगों को स्वच्छ पेयजल मिल सके। लेकिन हकीकत यह है कि इन एटीएम में पानी नहीं आता। मशीनें धूल खा रही हैं और जिनमें कभी पानी आता भी था, वे अब खराब हो चुकी हैं। इसी तरह, पानी की टंकी तो खड़ी कर दी गई है, लेकिन उसकी स्थिति भी बेहाल है—या तो वह सूखी पड़ी रहती है या फिर उसमें गंदा पानी भरा रहता है, जिसे पीना मुश्किल है।

नगर में विकास कार्यों के नाम पर बजट को ठिकाने लगाने के लिए कई योजनाएं चलाई गईं, लेकिन हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। चाहे सड़कों के डामरीकरण का मामला हो, निराश्रित गोवंश की दुर्दशा हो, या फिर “हर घर नल, हर घर जल” जैसी महत्वपूर्ण योजनाएं हों, सभी की स्थिति एक जैसी है। सड़कों का हाल यह है कि डामरीकरण के नाम पर सिर्फ ऊपरी परत चढ़ाकर खानापूर्ति कर दी जाती है, जो कुछ ही महीनों में उखड़ने लगती है। नालियां बंद पड़ी हैं, जिससे मामूली बारिश में ही जलभराव की समस्या हो जाती है।

निराश्रित गोवंश के लिए चलाई जा रही योजनाएं भी महज कागजों तक सीमित हैं। नगर में दर्जनों बेसहारा गायें और बैल सड़कों पर घूमते देखे जा सकते हैं, जो न सिर्फ यातायात बाधित करते हैं, बल्कि खुद भी दुर्घटनाओं का शिकार हो रहे हैं। इनकी देखरेख के लिए बनाई गई गौशालाएं या तो क्षमता से अधिक भरी हुई हैं या फिर पर्याप्त चारे-पानी के अभाव में बदहाल हैं। “हर घर नल, हर घर जल” योजना का भी यही हश्र हुआ है। कई जगह पाइपलाइनें तो बिछा दी गईं, लेकिन उनमें पानी नहीं आ रहा। जहां पानी उपलब्ध है, वहां उसकी गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे हैं। गंदा और दूषित पानी लोगों की सेहत के लिए खतरा बनता जा रहा है, लेकिन इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा।

आश्चर्य की बात यह है कि जिस वीआईपी गेट से कलक्ट्रेट के अधिकतर अधिकारी हर रोज गुजरते हैं, वे भी इस दुर्दशा को नजरअंदाज कर रहे हैं। यहां की अव्यवस्था को देखकर भी कोई सुध नहीं लेता, जिससे यह स्पष्ट होता है कि प्रशासनिक अमला भी इस लापरवाही का हिस्सा बन चुका है। प्रशासन विकास कार्यों का ढिंढोरा तो पीटता है, लेकिन जब इन सुविधाओं को सुचारू रूप से चलाने की बारी आती है, तो कोई ध्यान नहीं दिया जाता। जिला मुख्यालय में ऐसी कई योजनाएं धूल खा रही हैं, जिन पर भारी-भरकम राशि खर्च की गई थी। जनता और कर्मचारी दोनों ही इससे परेशान हैं, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं होती। यह स्थिति सिर्फ कलक्ट्रेट तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे उत्तरकाशी में विकास कार्यों की यही दुर्गति देखने को मिल रही है। क्या प्रशासन इस ओर ध्यान देगा, या फिर जनता को यूं ही लापरवाही की मार झेलनी पड़ेगी? यह सवाल अब हर किसी की जुबान पर है।


By Shashi Sharma

Working in journalism since 1985 as the first woman journalist of Uttarakhand. From 1989 for 36 years, he provided his strong services for India's top news agency PTI. Working for a long period of thirty-six years for PTI, he got his pen ironed on many important occasions, in which, by staying in Tehri for two months, positive reporting on Tehri Dam, which was in crisis of controversies, paved the way for construction with the power of his pen. Delivered.

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